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Ocassional Poet
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मोरें प्रौढ़ तनय सम ग्यानी।
बालक सुत सम दास अमानी।।
जनहि मोर बल निज बल ताही।
दुहु कहँ काम क्रोध रिपु आही।।
यह बिचारि पंडित मोहि भजहीं।
पाएहुँ ग्यान भगति नहिं तजहीं।।

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रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंहं
योगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम्‌।
मायातीतं सुरेशं खलवधनिरतं ब्रह्मवृन्दैकदेवं
वन्दे कन्दावदातं सरसिजनयनं देवमुर्वीशरूपम्‌।।

RCM- 6th sopana manglacharan

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कुंद इंदु सम देह..

19 152

In one kalpa he came at the end of Kaliyuga to establish dharma. (Not Kalki)

Dhumra Ganesha.

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चरन्तं परमात्मानं ज्ञात्वा सिद्धगणा भुवि । मृगपक्षिगणा भूत्वा राममेवानुसेविरे ।।

अध्यात्मरामायण किष्किन्धाकाण्ड

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तस्यारुरोह सहसा मध्यमं तन्महच्छिरः।
सोऽस्य मूर्ध्नि स्थितः कृष्णो ननर्त रुचिराङ्गद:।।

फिर सुन्दर भुजबन्द पहने श्रीकृष्ण सहसा उसके बीच वाले सिर पर चढ़ गये और खड़े होकर नृत्य करने लगे।

हरिवंश पर्व, महाभारत

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