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पीर पर्वत सी। Hypocrite।

राम चरित का बखान निज स्वारथ हेतु।
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" हाथ वज्र औ ध्वजा विराजे
कांधे मूज जनेऊ साजे"

जय श्री राम
जय हनुमान

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अचल होउ अहिवातु तुम्हारा।
जब लगि गंग जमुन जल धारा॥
वन जाते समय माता कौशल्या ने मां जानकी को आशीर्वाद दिया और कहा
"जब तक गंगा और यमुना की जलधार रहेगी तब तक तुम्हारा सुहाग अटल हो"

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ताहि भजहि मन तजि कुटिलाई। राम भजें गति केहिं नहिं पाई॥

रे मन! कुटिलता त्याग कर उन्हीं (श्री राम जी को) को भज। श्री राम को भजने से किसने परम गति नहीं पाई?

🙏🏽सियावर रामचंद्र पग रज शरणं 🙏🏽

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देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे॥

हे देवी! आपके चरण कमलों की पूजा करके देवता, मनुष्य और मुनि सभी सुखी हो जाते हैं॥

माता रानी की जय 🙏🏽🙏🏽

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" मागी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना"
RCM 1.99-100

क्यों धर्म ग्रन्थ बार बार पढ़ने पर अलग अलग अर्थ देते हैं?
"मागी नाव न केवटु आना "
ये चौपाई रामचिरत मानस में श्री राम और केवट प्रसंग की सब से पहली चौपाई है। इसी लाइन के ३ अर्थ निकल सकते। तीनों अर्थ
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