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बुद्धिर्बलं यशो धैर्यं निर्भयत्वमरोगता।
सुदार्ढ्यं वाक् स्फरत्वं च हनुमत्स्मरणाद्भवते्।।
आनन्द रामायण भवो १३/१६
जो व्यक्ति निरन्तर प्रभु श्री हनुमानजी की आराधना करता है। वह बुद्धि, बल, सुकीर्ति धैर्य, साहस, निर्भयता, स्थिरता, स्वस्थता एवं शब्द चातुर्य का प्रसाद बहुत ही सहजता से