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अब भला छोड़ के घर क्या करते
शाम के वक़्त सफ़र क्या करते
तेरी मसरूफ़ियतें जानते हैं
अपने आने की ख़बर क्या करते
वो मुसाफ़िर ही खुली धूप का था
साए फैला के शजर क्या करते.!
~ परवीन शाकिर
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