मोरें प्रौढ़ तनय सम ग्यानी।
बालक सुत सम दास अमानी।।
जनहि मोर बल निज बल ताही।
दुहु कहँ काम क्रोध रिपु आही।।
यह बिचारि पंडित मोहि भजहीं।
पाएहुँ ग्यान भगति नहिं तजहीं।।

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रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंहं
योगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम्‌।
मायातीतं सुरेशं खलवधनिरतं ब्रह्मवृन्दैकदेवं
वन्दे कन्दावदातं सरसिजनयनं देवमुर्वीशरूपम्‌।।

RCM- 6th sopana manglacharan

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यदि प्रेम का मतलब सिर्फ पा लेना होता, तो हर हृदय में राधा - कृष्ण का नाम नही होता ।

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by rishabh_sarup https://t.co/97HfmYoiKt "HarinaamSankirtana Is For The Pleasure of The Deities. What i am Thinkin…

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